Sunday, August 16, 2009

दूसरों सा-ही लेकिन नया

डा. बीर सिंह
स्वाइन फ्लू जाने-अनजाने एक हौवा बन गया है। असलियत सिर्फ यह है कि हमारे जाने-पहचाने जो फ्लू वायरस हैं उनकी जमात में यह एक नया वायरस शामिल हो गया है। इसका भी इलाज दूसरे वायरसों की तरह आसानी से हो सकता है। पूरी दुनिया में इसका हमला एकाएक था, इसलिए कई जानें गईं। फिर भी भारत में यह उस तरह बेकाबू नहीं है जसा दुनिया में अन्यत्र है। यहां उसका भय जरूर व्याप्त है।
इसे हौवा न बनाएं। यह भी दूसरे फ्लू वायरसों की तरह ही एक वायरस है। दूसरे फ्लू वायरसों से आज हमें डर नहीं लगता, क्योंकि उनसे हमारी अच्छी-खासी पहचान हो गई है, उनसे निपटने के तरीके हमने खोज लिए हैं। इस नए वायरस से निपटने के तरीके भी खोजे जा रहे हैं। लेकिन इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि यह कोई हौवा नहीं है, यह फ्लू वायरस ही है। साल में कई बार फ्लू अपना असर दिखाता है। मौसम बदलता है, तो जुकाम, खांसी, बदन दर्द वगैरह-वगैरह होता है। बारिश में दूसरे तरह का वायरस। सर्दी में दूसरे तरह का वायरस कुल मिलाकर साल में तीन चार दफा फ्लू का वायरस अपना असर दिखाता है। लेकिन तब आप इतना घबराते नहीं, डाक्टर के पास जाते हैं, इलाज कराते हैं। और हफ्ते-दस दिन में ठीक होकर काम पर चल देते हैं। बस इस बार इतना हुआ है कि इस बार एक और फ्लू वायरस इस जमात में शामिल हो गया है। लेकिन वह सब वायरस भी अपना असर दिखा रहे हैं। फ्लू के लक्षण दिखें तो हो सकता है कि दूसरे किसी मौसमी वायरस का शिकार हुए हों, जरूरी नहीं कि आप इसी वायरस का ही शिकार हुए हों। हो, सकता है कि आपको मौसमी सर्दी-जुकाम हो। बगैर घबराए सीधे आप किसी प्रशिक्षित डाक्टर के पास जाइए और उसे अपनी तकलीफ बताइए। अगर डाक्टर आपको सलाह दे तब ही एच1एन1 के स्क्रिनिंग सेंटर में जांच के लिए पहुंचिए। खामखाह भीड़ लगाने से एक खौफ का माहौल बनेगा।
सबसे बड़ी बात जो समझने की है कि मौसमी फ्लू की चपेट में हर साल 550 लोग आते हैं, जबकि उनका वैक्सीनेशन खोजा जा चुका है। इसकी तुलना में आज की स्थिति में इस नए वायरस की चपेट में तकरीबन 1,300 लोग आए हैं, जिनमें से लगभग 600 लोग ठीक हो चुके हैं। 23 लोगों की मौत हो चुकी है। अब अपने ही देश में दूसरी बीमारियों की बात करें तो टीबी की चपेट में हर रोज 6,301 लोग आते हैं। मधुमेह का शिकार होने वालों की संख्या 5,479 है और नशे का शिकार होने वालों की संख्या 2,740 है। तुलनात्मक आंकड़े देकर मैं केवल इतना बताना चाहता हूं कि इस नए फ्लू का अतिमूल्यांकन न करें।
अब जरा एक नजर दूसरे देशों की मौजूदा स्थिति पर भी डाल लें। विकसित देशों की कतार में सबसे आगे खड़े अमेरिका की बात करें तो अब तक वहां 45,000 से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं। मैक्सिको में भी आंकड़ा 50,000 को पार कर चुका है। कनाडा में भी स्थिति गंभीर है। कुल मिलाकर वैश्विक पटल पर हमारी स्थिति अभी बेहतर ही है। यह तर्क देकर मैं यह नहीं बताना चाहता कि जितने लोग भी चपेट में रहे हैं ठीक है। मेरा मकसद बस इतना भर है कि दूसरी बीमारियों की तरह यह भी एक बीमारी है और इसे वैसे ही लें। इस बीच, वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के एक बयान को लेकर हंगामा बरपा है, कि आने वाले दिनों में इससे तैंतीस फीसदी लोग संक्रमित होंगे। यह एक गणितीय आकलन है। अगर महामारी के इतिहास में जाएं तो 1918 में स्पैनिश फ्लू से तकरीबन पूरी दुनिया की चालीस फीसदी आबादी प्रभावित हुई थी, वहीं 1957 में से एसियन फ्लू (एच 2 एन 2) से तकरीबन एक मिलियन लोग प्रभावित हुए थे, 1968 में हांगकांग फ्लू (एच 2 एन 3) से भी तकरीबन एक मिलियन लोग प्रभावित हुए थे इनमें से 65 लाख लोग गंभीर रूप से इसकी चपेट में आए थे। लेकिन इस बार स्थिति अभी तक काबू में है।
हां, एक बात और नमूने को जांचने के लिए एक टेस्ट का प्रयोग किया जा रहा है, रीयल पीसीआर टेस्ट। इसमें संदिग्ध की नाक और मुंह से नमूना लिया जाता है। टेस्ट करने में 10-11 घंटे लगते हैं। चौबीस घंटे में रिपोर्ट आ जाती है। यह केवल स्वाइन फ्लू के परीक्षण के लिए बनी विशेष प्रयोगशाला में होता है। कुछ लोग मेरे पास आते हैं, कि उन्होंने टेस्ट करवाया और एक घंटे में उनकी रिपोर्ट आ गई है, इस टेस्ट की कीमत तकरीबन 200-300 रुपए होती है। यह टेस्ट बिल्कुल भी विश्वसनीय नहीं है। मास्क को लेकर भी लोगों में ऊहापोह है। आम जनता के लिए सर्जिकल मास्क ही काफी है। एन-95 केवल उन लोगों के लिए है जो स्क्रिनिंग सेंटर में काम करने वाले डाक्टरों एवं नमूनों की जांच में लगे लोगों के लिए है। मरीज और मरीज से सीधे संपर्क में आने वाले लोग ही इसका प्रयोग करें। दूसरी सबसे बड़ी भ्रांति प्रोफाइलेक्टिक (एहतियातन टैमीफ्लू का सेवन करना) यह भी विशेष परिस्थित में ही दिया जाएगा। सबके लिए यह व्यवस्था नहीं है। इससे जुड़ी तीसरी बात यह है कि स्वाइन फ्लू से पीड़ित महिला अपने बच्चे को स्तनपान कराए या न कराए। इसका जवाब है, बिल्कुल कराएं, लेकिन मास्क पहनकर। दूध पिलाने के फौरन बाद बच्चे के पूरे बदन को गीले कपड़े से पोंछकर उसे दूसरे कपड़े पहना दिए जाए।

(लेखक एम्स में प्रोफेसर कम्युनिटी मेडीसिन हैं)
- संध्या द्विवेदी से बातचीत पर आधारित

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