Monday, July 30, 2012

तिवारी जी,

एन डी तिवारी बधाई हो आप बाप बन गए। आपको तो रोहित का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसने 87 वर्ष की उम्र में पिता होने का एहसास करवाया। बाप बनाम बेटे की लड़ाई से एक बात तो साफ हो गई कि बाप एक नंबरी तो बेटा दस नंबरी निकला। जिद्दी बेटे ने गुरुर से भरे बाप को झुका ही दिया। हालांकि इस पूरे ड्रामें एक बात जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया वह यह कि एक बेटे ने अपनी मां का साथ ऐसे मामले में दिया जिसे अक्सर हमारे समाज में कलंक कहा जाता है। बहुत खड़ी भाषा में बोलें तो ऐसी औरत के लिए लोग अक्सर कह देते हैं कि जवानी में रंगरलियां मनाईं हैं तो अब भुगतो नतीजा। अक्सर ऐसी मां के बेटे भी अपनी मां को हो दोषी मानते हैं लेकिन यहां रोहित ने अपनी मां को इंसाफ दिलाया। एक ऐसे व्यक्ति को कठघरे में खड़ा कर दिया जो राजनीति में मजबूती के साथ स्थापित था। इस पूरी लड़ाई के दौरान रोहित को क्या-कुछ नहीं सहना पड़ा होगा? ये बताने की जरूरत नहीं है। परिवार, दोस्तों और समाज से उसे कई तरह के ताने मिले होंगे। हालांकि अगर ढूढ़ां जाए तो ऐसी कई कद्द्दावर शख्सियतें होंगी जो कई बेटे-बेटियों के जैविक पिता या हो सकता है कि ऐसी मांएं भी हों। लेकिन उनके खिलाफ लड़ने की हिम्मत किसी में भी नहीं होती। उज्जवला को फक्र होगा कि उसने रोहित को पैदा किया। तिवारी जी गुस्सा तो बहुत आ रहा होगा। लेकिन आप कर भी क्या सकते हैं निगोड़ी विज्ञान ने आपका भांडाफोड़ कर दिया। पर अब इतनी छीछालेथन के बाद जब आप बाप बन ही गए हैं तो सरेआम आकर मान लीजिए, गल्तियां किससे नहीं होती? बधाई हो रोहित और उससे भी ज्यादा। बधाई हो उज्जवला को जिसने रोहित जैसा बेटा पाया

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