Tuesday, November 27, 2012

कहां से लाई छुड़ौती

ह्यपति का छोडे का चाहित हव। लेकिन पैसवा नहीं हव। तब्बैं हम ई जिंदगी जिए का मजबूर हवह्ण। बनारस के चोलापुर ब्लाक, बेलापुर गांव की प्रियंका की यह बात सुनने में ले ही अजीब लगे। लेकिन यह सच है कि बिना छुड़ौती की रकम दिए वह अपने पति को नहीं छोड़ सकती है। चाहें वह अपनी शादी से खुश हो या नहीं। छुड़ौती उस रकम को बोला जाता है जो एक पक्ष दूसरे को अदा करता है। छुड़ौती ग्रामीण बनारस की प्रचलित प्रथा है। इस प्रथा के मुताबिक पति-पत्नी में से कोई एक अगर दूसरे को छोड़ना चाहे तो उसे कुछ रकम अदा करनी पड़ती है। यहां के गांवों में खासकर दलितों में यह प्रथा खासी प्रचलित है। तलाक लेने के लिए कानून का दरवाजा खटखटाना पंचायत की तौहीन मानी जाती है। ऐसे में पंचायतें ही पति-पत्नी के विवाद निपटाती हैं। पति या पत्नी किसी एक या फिर दोनों की गुहार के बाद पंचायत लगती है। सरपंच के सामने दोनों अपनी-अपनी बात रखते हैं। उसके बाद सरपंच पूछता है कि कौन किसको छोड़ना चाहता है। ऐसे में अगर पति कहता है कि वह पत्नी को छोड़ना चाहता है, तो पत्नी के पक्ष वाले रकम की मांग करते हैं। इसके उलट पत्नी छोड़ना चाहे तो पति रकम की मांग करता है। इसकी खास बात यह है गलती किसी की ी हो, लेकिन छोड़ने वाले को ही रकम चुकानी पड़ती है। बनारस के कैंट रेलवे स्टेशन से करीब 35 किलोमीटर दूर बरबसपुर में प्रियंका अपनी चाची सास के पास रहती है। इक्कीस साल की प्रियंका दलित परिवार से है। प्रियंका अपनी आप बीती कुछ ऐसे बताती हैं। चैदह बरस की रहली तब्बैं शादी हो गईल। तब पता न रहल की पति कम दीमाग हव। पियत-खात तो शुरुवै से रहले। लेकिन अब सात साल बीत गईल। का करि, कुछौ समझ मा नहीं आत हव। प्रियंका का मायका गहनी गांव कैंट से करीब सात-आठ किलोमीटर दूर आजमगढ़ रोड पर है। उसके मां-बाप भी किसी तरह से उसका पीछा उसके पति से छुड़ाना चाहते हैं। लेकिन वो बेबस हैं। प्रियंका ने बताया कि उसका पति उसे छोड़ने को राजी नहीं है। हालांकि बीस-बीस दिन तक उसका पति गप्पू उसकी खैर-खबर तक नहीं लेता। पति, सास-ससुर, जेठ-जेठानी सब थोड़ी ही दूर पर पहाड़िया गांव में रहते हैं। पहले प्रियंका भी वहीं रहती थी लेकिन वहां पर पति के रंग-ढंग ठीक नहीं थे। प्रियंका ही नहीं आस-पड़ोस के लोगों का भी कहना है कि उसके पति का किसी दूसरी औरत से संबंध है। उसके मंगलसूत्र और नाक की नथ वह पहले ही बेच चुका है। ऐसे में वह अपनी चाची सास के साथ इस आस में रहने लगी की शायद दूर रहने पर उसे उसकी याद आए। लेकिन हालात जस के तस हैं। आठवीं पास करके वह ससुराल आई थी। अब वह बीए का पहला सा पूरा कर चुकी है। मायके वालों ने जैसे-तैसे उसे पढ़ाया। पति पांचवी पास है। हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। दोनों के बीच पति-पत्नी जैसा कोई संबंध नहीं है। उकताहट भारी आवाज में प्रियंका ने बताया कि महीनों हो जाते हैं गप्पू को देखे हुए। वह आता भी है तो बस बाहर-बाहर ही चला जाता है। कभी नहीं पूछता की क्या खाती हो। कैसे चूल्हा जलता है। मैं कुछ बोलूं तो बस मारने दौड़ता है। अभी तो उम्र है सो दूसरी शादी भी हो जाएगी। सात साल इंतजार किया अब अगर कोई कदम नहीं उठाया तो जिंदगी कैसे कटेगी। प्रियंका की मां पुष्पा ने बताया कि हम भी पल्ला छुड़ाना चाहते हैं। लेकिन सूझ नहीं रहा क्या करें। अगर पंचायत हमने बैठाई तो हमसे रकम की मांग होगी। कहां से लाएंगे। चार बेटियां हैं। दो की शादी किसी तरह की। अभी भी दो बची हैं। हम दोनों पति-पत्नी मजदूरी करते हैं। किसी तरह दो वक्त की रोटी जुगाड़ पाते हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि कम से कम सत्तर-अस्सी हजार की मांग होगी। पति गप्पू से पूछो तो साफ कह देता है। मैं अपनी तरफ से उसे नहीं छोड़ूंगा। वह चाहे तो छोड़ दे। पंचायत बैठकर हमारा फैसला कर दे। छुड़ौती देकर वह जहां चाहे जा सकती है। लड़की के ससुर लौटू भी गप्पू की हां में हां मिला रहे हैं। उनका कहना है कि बहू को चाहिए कि वह अपने पति के साथ रहे। साथ रहेगी तो वह किसी दूसरी औरत को नहीं ताकेगा। मर्द की जात है, सो उसे कुछ तो मन बहलाने को चाहिए ही। सो अगर पत्नी नहीं रहेगी तो इधर-उधर मुंह मारेगा ही। इस सवाल पर की अगर दोनों की पटती नहीं तो अलग क्यों नहीं हो जाते ये लोग। उनका भी जवाब गप्पू जैसा ही था। हम तो नहीं अलग होना चाहते। पर, प्रियंका होना चाहे तो। पंचायत करा ले। प्रियंका और उसके घरवालों को यह सलाह भी मिली कि वह कानून का दरवाजा खटखटाए। लेकिन ऐसा करना पंचायत की अवमानना होगी। छुड़ौती की रकम अगर पति अदा करता है तो वह पत्नी पक्ष से मिली दहेज के बराबर होती है। लेकिन पति किस रकम की मांग करता है?