Tuesday, February 26, 2013

http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/39639-2013-02-26-04-39-13

Wednesday, February 20, 2013

फांसी के सियासी मायनें!

मानवाधिकारों की रक्षा के लिए बनीं अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा बनाए गए दस्तावेज के आर्टिकल-5 के अनुसार ‘सजा के नाम पर किसी भी व्यक्ति के साथ क्रूर, अपमानजनक या अमानवीय या पीड़ादायक व्यवहार नहीं किया जा सकता है।’ फिर मौत की सजा तो सबसे ज्यादा क्रूर और अमानवीय व्यवहार है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए यह संस्था मौत की सजा का विरोध करती है। संस्था का यह भी तर्क है कि अपराधी को सजा देने से अपराध कम नहीं होता। इस संस्था ने भारत में पिछले तीन महीनों के भीतर दो अपराधियों को सजा देने पर विरोध जताया है। दुनियाभर के करीब 200 देशों में से 193 देश इस संस्था के सदस्य हैं। इससे जुड़े लगभग सभी देशों ने भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस तरह की सजा दिए जाने की आलोचना की है। इस संस्था के 96 सदस्य देशों में मौत की सजा पूरी तरह से खत्म की जा चुकी है। 34 देशों में इस मुद्दे को लेकर गंभीर चर्चा की जा रही है। ऐेसे में भारत में फांसी की सजा ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर बवाल खड़ा कर दिया है। देश के भीतर भी कई सामाजिक संस्थाओं, वकीलों और न्यायाधीशों ने सरकार के इस फैसले की आलोचना की है। हाल ही में दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार के बाद जस्टिस वर्मा की कमेटी द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में भी साफतौर पर कहा गया था कि कहीं ऐसा प्रमाण नहीं मिलता कि मौत की सजा अपराधों को कम करने में मददगार साबित हुई हो। लेकिन सरकार ने फिर भी ऐसी स्थिति जहां बेहद क्रूर तरह से बलात्कार किया गया हो या बलात्कार के बाद इसका सामना करने वाली लड़की की हत्या कर दी गई हो। हड़बड़ी में लाए गए अपने अध्यादेश में इन दोनों ही परिस्थितियों में सरकार ने अपराधियों के लिए फांसी की सजा बनाए रखी है। यह रिपोर्ट कई महिला एवं अन्य सामाजिक संगठनों और देश के आम लोगों की राय के बाद बनाई गई थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि देश में तीन महीनों के भीतर दो अपराधियों को फांसी की सजा क्यों दी गई है? अजमल कसाब मुंबई हमलों का मास्टर माइंड और अफजल गुरु संसद में हमला करने का दोषी था। चंदन की तस्करी करने वाले वीरप्पन के चार साथी भी इस लाईन में खड़े हैं। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने अभी इस पर रोक लगा दी है। कई राजनीतिक विशेषज्ञ इन दोनों ही सजाओं को 2014 में देश में होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। अपने दोनों कार्यकालों (साल 2004 से लगातार केंद्र में) में भ्रष्टाचार, अपराधों और महंगाई पर लगाम लगाने में असफल रही सरकार ऐसा करके यह दिखाना चाहती है कि वह अपराधों को लेकर गंभीर है और न्याय व्यवस्था को सुधारने का दिखावा कर रही है। जिससे आम लोगों के वोट खींचे जा सकें।