Wednesday, February 5, 2014

दंगों में उजड़ों को बसाने की जिम्मेदारी किसकी?

शाहपुर कैंप-बढ़ती सर्दी, सरकारी राशन बंद, नहीं बंटे कंबल-रजाई, न जलवाए अलाव

दंगों के बाद कुटबा गांव से आया परिवार। चार महीने बीते नहीं मिला मुआवजा। बच्चों की पढ़ाई ठप, कमाई ठप।

दंगों की आपबीती बताते रो पड़े जोला गांव से अमजद खान

मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश। मुजफ्फरनगर में दंगा पीड़ितों के लिए बसाए गए लोई और सांझक राहत कैंप प्रशासन द्वारा उखाड़े जा चुके हैं। शाहपुर और बसी कला समेत दूसरे कैंप उखाड़े जा रहे हैं। लोगों का कहना है कि सबको मुआवजा नहीं मिला है। जिनको मिला भी है, उन्हें जमीनें खरीदने और घर बनाने के लिए समय दिया जाना चाहिए। दूसरी तरफ प्रषासन का कहना है कि सभी जायज अट्ठारह सौ लोगों को मुआवजा दिया जा चुका है।
शाहपुर कैंप में अपने तीन भाइयों के साथ रह रहे रहमिला ने बताया कि हम में से किसी को भी मुआवजा नहीं मिला है। यहां का ईदगाह कैंप भी उखाड़ दिया गया है। बिना घर हम कहां जाएं? बच्चों की पढ़ाई भी बंद है। बसी कलां कैंप में रह रहे कुटबा गांव के शौकत ने बताया कि उन्हें मुआवजे़ की रकम मिल गई है। लेकिन उनके तीन भाइयों को नहीं मिली है। जबकि उनके राशन कार्ड अलग-अलग हैं। मुआवजा देने के बाद हमसे कहा जा रहा है कि हम लोग कैंपों छोड़ दें। पर इतनी जल्दी हम मकान कैसे बनाएं?
   ज्वाइंट सिटीजन इनीशिएटिव संस्था में दंगा पीड़ितों के लिए काम कर रहे वकील अस्करी नकवी के अनुसार पुर्नस्थापना यानि दंगे का सामना करने वालों को दोबारा बसाने का मतलब केवल मुआवजा देना भर नहीं है। बसाने का मतलब होता है रहने, खाने पीने, शिक्षा की व्यवस्था करना। लेकिन सरकार मुआवजा देकर अपना पल्ला झाड़ रही है। दूसरी बात जिनके मतदाता पहचान पत्र अलग-अलग हैं, उनके परिवारों में केवल मुखिया को मुआवजा देने भर से सरकार की जिम्मेदारी पूरी नहीं हो सकती है।
शाहपुर कैंप-दो जनवरी, 2014 
अमजद खान की एक तस्वीर जोला कैंप से 10 अक्टूबर,2013

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