Friday, February 7, 2014

अब तो गैर सरकारी मदद भी ठप...



अल्लाबंदा का सवाल क्या जाट हमें अपने खेतों में देंगे काम
सरकार ने तो करीब ढाई महीनें पहले ही राशन और किसी भी तरह की मदद दंगा पीड़ितों को भेजनी बंद कर दी थी। लेकिन अब तो गैर सरकारी संगठनों और अन्य संस्थाओं ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। मुजफ्फरनगर के शाहपुर कैंप में 22 जनवरी और जोला कैंप में 5 फरवरी को दंगा पीड़ितों को मदद दे रही स्थानीय कमेटियों ने घोषणा कर दी कि अब राशन खत्म हो चुका है। बाकी के कैंपों ने भी राशन खत्म होने की बात कही है। शामली के सभी कैंपों में काम कर रही स्थानीय कमेटियों के अनुसार 10-15 दिन का ही राशन बचा है। इसके बाद क्या होगा? इसका जवाब अब किसी के पास नहीं है।
  अब दंगा पीड़ितों को खुद अपने लिए राशन और अन्य बुनियादी जरूरतों का जुगाड़ करना होगा। शाहपुर के अल्लाबंदा ने बताया कि मजदूरी के लिए हम लोग जा रहे हैं। कुछ-कुछ काम मिल जाता है। पर मजदूरी करें तो कहां करें? क्योंकि इस इलाके में तो अधिकतर लोग खेतों में काम करते थे। हम लोग तो मजदूर लोग हैं। खेत तो अधिकतर जाटों के ही हैं। हमें तो मुआवजा भी नहीं मिला। क्या करें कुछ समझ नहीं आता? अब मुआवजे के लिए चक्कर लगाएं या रोजी रोटी जुगाड़ें।
 मुजफ्फरनगर और शामली में लगातार दो दिनों से बारिस हो रही है। इस बीच शामली के दाऽोरी खुर्द कैंप में 5 फरवरी को ढाई साल के एक बच्चे की निमोनिया और मलकपुरा कैंप में 28 जनवरी को एक छह साल की बच्ची की ठंड लगने से मौत हो गई।

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